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रोटी / गौरीशंकर

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{{KKCatRajasthaniRachna}}<poem>म्हारो चूल्हो होयग्यो
सैचन्नण
वा रोटी पोई
म्हैं सैकूं,
-खीरां माथै रोटी फुलाओ!
रोटी फूलै।
देख! आपणो प्यार फूलग्यो।
वा आपरी छाती कानी देखै
अर हांसै।</poem>
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