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|रचनाकार=किरण राजपुरोहित ‘नितिला’
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>भाजतो-सो वायरो आयो
अर म्हारी तणी माथै
विलखो-सो पसरग्यो
टांगी ही जठै
काल रात री चांदणी मांय भींज्योड़ी
म्हारै अर उणां रै बिचाळै होयी बात
बिणजारा वायरा!
थूं क्यूं आवै
वारूंवार इण दिस,
म्हारी इण तणी-
छै म्हारो सै सिणगार
म्हारी सगळी मनवार

म्हारै इण लैरावत एकांत
थारो कांई काम?
इब ना आईजै वायरा!
आवै तो करजै खंखारो
जिणसूं होय सावचेत
भेळा कर सकूं
म्हारा सगळा सिणगार।</poem>
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