भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

397 bytes removed, 14:08, 7 मार्च 2015
<div style="background:#eee; padding:10px">
<div style="background:#dddtransparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:3px 0px inset #aaa; padding:10px">
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगीखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
<divstyle="text-align: center;">रचनाकार: [[द्विजेन्द्र 'द्विज'त्रिलोचन]]
</div>
<poemdiv style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैंखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वारहम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैंअपरिचित पास आओ
हमारी नींदों आँखों में अक्सर जो डालती सशंक जिज्ञासामिक्ति कहाँ, है अभी कुहासाजहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं ख़ललवो ऐसी बातों को दिल स्तम्भ शेष भय की परिभाषाहिलो-मिलो फिर एक डाल केखिलो फूल-से निकाल देते हैं, मत अलगाओ
हमारे कल सबमें अपनेपन की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगीमायाहर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं कहीं दिखे ही नहीं गाँवों अपने पन में वो पेड़ हमेंबुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं कमाल ये है वो गोहरशनास हैं ही नहींजो इक नज़र में समंदर खंगाल देते है वो सारे हादसे हिम्मत बढ़ा गए ‘द्विज’ कीकि जिनके साये ही दम-ख़म पिघाल देते हैं जीवन आया </poemdiv>
</div></div>