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वतन का राग / बृज नारायण चकबस्त

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ज़मीन हिन्द की रुतबे <ref>पद</ref> में अर्शाअला अर्शआला<ref>सर्वोच्च आकाश</ref> है
ये होमरूल की उम्मीद का उजाला है
मिसेज बेसण्ट ने इस आरजू आरज़ू<ref>कामना</ref> को पाला है
फ़क़ीर क़ौम के हैं और ये राग माला है
तलब <ref>चाह</ref> फ़िज़ूल है काँटे की फूल के बदलेन लें बहिश्त <ref>स्वर्ग</ref> भी हम होमरूल के बदले
वतनपरस्त <ref>देशभक्त</ref> शहीदों <ref>प्राण समर्पित करने वाला</ref> की ख़ाक लाएँगे
हम अपनी आँख का सुरमा उसे बनाएँगे
ग़रीब माँ के लिए दर्द दुख उठाएँगे
यही पयामे वफ़ा <ref>कृतज्ञता-सन्देश</ref> क़ौम को सुनाएँगे
तलब फ़िजूल है काँटे की फूल के बदले
न लें बहिश्त भी हम होमरूल के बदले
हमारे वास्ते ज़ंजीर तौक़ <ref>गले की ज़ंजीर</ref> गहना हैवफ़ा <ref>वादा निभाने वाला</ref> के शौक़ में गाँधी ने जिसको पहना है
समझ लिया कि हमें रंजो दर्द सहना है
पिन्हानेवाले अगर बेड़ियाँ पिन्हाएँगे
ख़ुशी से क़ैद के गोशे <ref>कोने</ref> को हम बसाएँगे
जो सन्तरी दरे ज़िन्दाँ <ref>कारागार</ref> के सो भी जाएँगे
ये राग गा के उन्हें नींद से जगाएँगे
न लें बहिश्त भी हम होमरूल के बदले
ज़बाँ को बन्द किया है ये गाफ़िलों <ref>अनजानों</ref> को है नाज़<ref>अभिमान</ref>ज़रा रगों में लहू का भी देख लें अन्दाज़<ref>ढंग</ref>
रहेगा जान के हमराह <ref>साथ</ref> दिल का सोज़ गदाज़<ref>दुःख दर्द</ref>
चिता से आएगी मरने के बाद ये आवाज़
न लें बहिश्त भी हम होमरूल के बदले
यही दुआ <ref>कामना</ref> है वतन के शकिस्ताहालों <ref>दुःखी दीन</ref> कीयही उमंग जवानी के नौनिहालों <ref>युवक</ref> की
जो रहनुमा <ref>पथ प्रदर्शक</ref> है मुहब्बत पै मिटनेवालों की
हमें क़सम है उसी के सफ़ेद बालों की
न लें बहिश्त भी हम होमरूल के बदले
यही पयाम <ref>सन्देश</ref> है कोयल का बाग़ के अन्दर
इसी हवा में है गंगा का ज़ोर आठ पहर
हिलाले ईद <ref>ईद का चाँद</ref> ने दी है यही दिलों को ख़बरपुकारता है हिमाला से अब्र <ref>बादल</ref> उठ-उठकर
तलब फ़िजूल है काँटे की फूल के बदले
बसे हुए हैं मुहब्बत से जिनकी क़ौम के घर
वतन का पास <ref>ख़याल</ref> है उनको सुहाग <ref>सौभाग्य</ref> से बढ़कर
जो शीरख़्वार <ref>दूध पीने वाला</ref> हैं हिन्दोस्ताँ के लख़्ते जिगर<ref>कलेजे के टुकड़े</ref>ये माँ के दूध से लिक्खा है उनके सीने <ref>छाती</ref> पर
तलब फ़िजूल है काँटे की फूल के बदले
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