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|रचनाकार=विजेंन्द्र विजेंद्र एस विज
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वह,
दूर बैठा बस रास रचाता रहा
बासुरी बाँसुरी की धुन मे में मगन,
गोपियो के इर्द-गिर्द लिपटा...
नहीँनहीं,रोक सका है
वह देवकी नन्दन भी
उन विधवाओ को आने से
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