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बनके प्रेम-घटा / जेन्नी शबनम

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1.
मन की पीड़ा
बूँद-बूँद बरसी
बदरी से जा मिली
तुम न आए
साथ मेरे रो पड़ीं
काली घनी घटाएँ !

2.
तुम भी मानो
मानती है दुनिया-
ज़िन्दगी है नसीब
ठोकरें मिलीं
गिर-गिर सँभली
ज़िन्दगी है अजीब !

3.
एक पहेली
उलझनों से भरी
किससे पूछें हल ?
ज़िन्दगी है क्या
पूछ-पूछके हारे
ज़िन्दगी है मुश्किल !

4.
ओ प्रियतम !
बनके प्रेम-घटा
जीवन पे छा जाओ
प्रेम की वर्षा
निरंतर बरसे
जीवन में आ जाओ !

(जुलाई 13, 2012)</poem>
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