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<poem>कल
दुनि‍या के बीज मि‍लेंगे
अभी तो व्‍यस्‍त हैं
दुनि‍या के नाश के आवि‍श्‍कारक

वि‍कल्‍प
जब भी कोई
मि‍ल जाएगा पृथ्‍वी का
नष्‍ट कर दी जाएगी दुनि‍या

जि‍सका जी नहीं लगता
कल का इंतज़ार करें
इंतज़ार करे पृथ्‍वी के नष्‍ट होने तक

मुकम्‍मल सोच ले तरकीब
बीजों को हथि‍याने की,
सूँघ ले सारे ठि‍काने
जहाँ, हो सकता है दस्‍तावेज
पृथ्‍वी के वि‍कल्‍प का

-1998 ई0</poem>