भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
क्या कशिश थी तेरे बहाने में
लुत्फ़ आया फ़रेबखाने में

आतिशे-ग़म1 न मिलस की वरना
क्या था खूने-जिगर2 जलाने में

जुस्तजू में तेरी हुआ हूं गुम
ये मिला मुझको दिल लगाने में

चार तिनकों का हश्र क्या कहिये
लग गर्इ आग आशियाने में

तेरे ग़म का भी बोझ ढो लेता
हाय मजबूर हूं ज़माने में

वो पशेमां से हो गये सुनकर
बात क्या थी मेरे फ़साने में

तुम 'कंवल' को सता लो जी भर के
ये तो यकता3 है ग़म उठाने में

1. दुखकीआग 2. यकृतकीरक्त 3. अद्वितीय ।

</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,357
edits