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{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
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}}


तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले

अपने पे भरोसा है तो ये दाँव लगा ले


डरता है ज़माने की निगाहों से भला क्यों

इन्साफ़ तेरे साथ है इल्ज़ाम उठा ले


क्या ख़ाक वो जीना है जो अपने ही लिए हो

ख़ुद मिट के किसी और को मिटने से बचा ले


टूटे हुए पतवार हैं किश्ती के तो ग़म क्या

हारी हुई बाहों को ही पतवार बना ले
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