भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी / धीरेन्द्र अस्थाना

728 bytes added, 09:58, 26 फ़रवरी 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना }} {{KKCatKavita}} <poem>घर क...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>घर की पुरानी दीवारों सा,
अब ढहने लगा है आदमी !

बहुत ढो चुका रिश्तों का बोझ,
अब दबने लगा है आदमी !

जिन्दगी के हादसों में टूटकर
बिखरने लगा है आदमी !

अपनों में रहकर भी अजनबी
सा लगने लगा है आदमी !

घर की पुरानी दीवारों सा,
अब ढहने लगा है आदमी !
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,357
edits