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|संग्रह=गीत जो गाए नहीं / गोपालदास "नीरज"
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<poem>

लहरों में हलचल होती है..

कहीं न ऐसी आँधी आवे
जिससे दिवस रात हो जावे
यही सोचकर कोकी बैठी तट पर निज धीरज खोती है।
लहरों में हलचल होती है..

लो, वह आई आँधी काली
तम-पथ पर भटकाने वाली
अभी गा रही थी जो कालिका पड़ी भूमि पर वो सोती है।
लहरों में हलचल होती है..

चक्र-सदृश भीषण भँवरों में
औ’ पर्वताकार लहरों में
एकाकी नाविक की नौका अब अन्तिम चक्कर लेती है।
लहरों में हलचल होती है..

</poem>
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