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चली वां से दामन उठाती हुई
 
कड़े से कड़े को बजाती हुई
'ज़रा घर के रंगी के तहक़ीक कर लो
 
यहाँ से है के पैसे डोली कहारों।'
रंगीन का लहज़ा सबसे अलग था। रंगीन के लहज़े में स्त्री-स्वर था। और यह स्त्री-स्वर उस वक़्त लखनऊ से दिल्ली तक उनकी विशिष्ट पहचान बन गया। रंगीन ने रेख़ती को काफ़ी आगे बढ़ाया। जबान में नई जान डाल दी, इसलिए आज भी जब उर्दू शायरी की बात होती है तो रंगीन का नाम उनके विशिष्ट लहज़े के लिए अनायास ही जबान पर आ जाता है। रंगीन के शायरी संग्रह में लाखो अशआर हैं। रंगीन ने 81 साल की उम्र पाई। रंगीन फ़िक्र के लिहाज़ से बड़े शायर न हो, लेकिन रेख़ती का पैगाम दूर-दूर तक पहुँचाने वालो में उनका नाम शामिल है।
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