भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
1,177 bytes added,
09:34, 9 मार्च 2014
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}
<poem>
हम से हमसे भागा न करो , दूर ग़ज़ालों गजलों की तरह
हमने चाहा है तुम्हें चाहने वालों की तरह
ख़ुदखुद-ब-ख़ुद खुद नींद-सी आँखों आंखों में घुली जाती है महकी -महकी है शब-ए-ग़म गम तेरे बालों की तरह
और क्या इस से ज़्यादा कोई नर्मी बरतूँ तेरे बिन, रात के हाथों पे ये तारों के अयागदिल खूबसूरत हैं मगर जहर के ज़ख़्मों को छुआ है तेरे गालों प्यालों की तरह
और तो मुझ को मिला क्या मेरी मेहनत का सिला उसमें जियादा कोई नर्मी बरतूंचंद सिक्के हैं मेरे हाथ में छालों दिल के जख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह
ज़िन्दगी जिस गुनगुनाते हुए और आ कभी उन सीनों मेंतेरी खातिर जो महकते हैं शिवालों की तरह तेरी ज़ुल्फ़ें तिरी आँखें तिरे अबरू तिरे लबअब भी मशहूर हैं दुनिया में मिसालों की तरह हम से मायूस न हो ऐ शब-ए-दौराँ कि अभीदिल में कुछ दर्द चमकते हैं उजालों की तरह मुझसे नजरे तो मिलाओ कि हजारों चेहरेमेरी आंखों में सुलगते हैं सवालों की तरह और तो मुझ को मिला क्या मिरी मेहनत का सिलाचंद सिक्के हैं मिरे हाथ में छालों की तरह जुस्तजू ने किसी मंजिल पे ठहरने न दियाहम भटकते रहें आवारा ख्यालों की तरह जिन्दगी! जिसको तेरा प्यार मिला वो जाने हम तो नाकाम रहे रहें, चाहने वालों की तरहतरह।</poem>