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अब तो मुझे न और रुलाओ!मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
रोते-रोते आँखें सूखीं,सर्वस देकर मौन रुदन का क्यों व्यापार किया करता हूँ?हृदय-कमल भूल सकूँ जग की पाँखें सूखीं,दुर्घातें उसकी स्मृति में खोकर हीमेरे मरु-जीवन का कल्मष धो डालूँ अपने नयनों से जीवन में तुम मत अब सरस सुधा बरसाओ!रोकर हीअब इसीलिए तो मुझे न और रुलाओ!उर-अरमानों को मैं छार किया करता हूँ।मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
मुझे न जीवन की अभिलाषाकहता जग पागल मुझसे,पर पागलपन मेरा मधुप्यालामुझे न तुमसे कुछ भी आशाअश्रु-धार है मेरी मदिरा,उर-ज्वाला मेरी इन तन्द्रिल पलकों पर मत स्वप्निल संसार सजाओ!मधुशालाइससे जग की मधुशाला का मैं परिहार किया करता हूँ।अब तो मुझे न और रुलाओ!मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
अब नयनों में तम-सी कालीकर ले जग मुझसे मन की पर,मैं अपनेपन में दीवानाझलक रही मदिरा चिन्ता करता नहीं दु:खों की लाली,मैं जलने वाला परवानाअरे! इसी से सारपूर्ण-जीवन की संध्या आई हैनिस्सार किया करता हूँ।मैं क्यों प्यार किया करता हूँ? उसके बन्धन में बँध कर ही दो क्षण जीवन का सुख पा लूँऔर न उच्छृंखल हो पाऊँ, मत आशा के दीप जलाओ!मानस-सागर को मथ डालूँअब इसीलिए तो मुझे न और रुलाओ!प्रणय-बन्धनों का सत्कार किया करता हूँ।मैं क्यों प्यार किया करता हूँ?
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