भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एका की कमी / हरिऔध

1,717 bytes added, 16:31, 17 मार्च 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
|अनुवादक=
|संग्रह=चुभते चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
धुन हमारी अलग रही बँधाती।

एक ही राग कब हमें भाया।

जाति रँग में ढले पदों को भी।

कब गले से गला मिला गाया।

दम सुनाने में नहीं जिस के रहा।

है नहीं उस की सुनी जाती कहीं।

खोलते तो कान वै+से खोलते।

एक सुर से बोलते ही जब नहीं।

है समाई न एक धुन अब तक।

दिल हिले तो भला हिले वै+से।

वु+छ न वु+छ है कसर मिलाने में।

सुर मिले तो भला मिले वै+से।

तो समय पर चूकते हम किस तरह।

जो समय की रंगतें पहचानते।

कौन सुर से सुर मिलाता तब नहीं।

सुर अगर सुर से मिलाना जानते।

बात कहते अगर नहीं बनती।

तो भला था यही कि चुप रहते।

सुर सदा है अलग अलग रहता।

एक सुर से कभी नहीं कहते।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits