भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छींक / हरिऔध

1,224 bytes added, 17:42, 17 मार्च 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
|अनुवादक=
|संग्रह=चोखे चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पड़ किसी की राह में रोड़े गये।

औ गये काँटे बिखर कितने कहीं।

जो फला फूला हुआ वु+म्हला गया।

यह भला था छींक आती ही नहीं।

क्यों निकल आई लजाई क्यों नहीं।

क्यों सगे पर यों बिपद ढाती रही।

तब भला था, थी जहाँ, रहती वहीं।

छींक जब तू नाक कटवाती रही।

राह खोटी कर किसी की चाह को।

मत अनाड़ी हाथ की दे गेंद कर।

छरछराहट को बढ़ाती आन तू।

छींक! छाती में किसी मत छेद कर।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits