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छूतछात / हरिऔध

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जो बहुत दुख पा चुके हैं आज तक। 
कम न दुख होगा उन्हें अब दुख दिये।
 
सब तरह से जो बेचारे हैं दबे।
 
मत उन्हें आँखें दबा कर देखिये।
छूत क्या है, अछूत लोगों में।
 
क्यों न उन का अछूतपन लखिये।
 
हाथ रखिये अनाथ के सिर पर।
 
कान पर हाथ आप मत रखिये।
भूत सिर पर है बड़प्पन का चढ़ा।
 
छल रही है छूत जैसी बद बला।
 
कर बुरी बेकार बेजा ऐंठ क्यों।
 
जाति का हम ऐंठ देते हैं गला।
बाहरी जातपाँत के पचड़े।
 
भीतरी छूतछात की साधों।
 हैं हमें बाँधा बाँध बेतरह देतीं। 
क्यों उन्हें जाति के गले बाँधों।
है कही जाती कहीं पर दानवी।
 
पुज रही है वह बनी देवी कहीं।
 
आज छूआछूत - चिन्ता से छिदे।
 
कौन सी छाती हुई छलनी नहीं।
तब सके छूट क्यों छिछोरापन।
 
सूझ जब छाँह छू नहीं पाती।
 
क्यों मिटे छूतछात के झगड़े।
 
जब छिले दिल छिली नहीं छाती।
आदमी हैं, आदमीयत है भली।
 
बात यह कोई कहे इतरा नहीं।
 
छेद छाती में अछूतों के हुए।
 
जो अछूता जी गया छितरा नहीं।
तब न छुटकारा दुखों से पा सके।
 
हम छोटाई छूत से छूटे न जब।
 
एक सा सब छूटना होता नहीं।
 
छूटने से पेट छूटा पेट कब।
वे अछूता हमें न छोड़ेंगे।
 
छूत से हैं जिन्हें नहीं छूते।
 
हैं दबे पाँव के तले तो क्या।
 
क्या हमें काटते नहीं जूते।
क्या उसी से कढ़ी न गंगा हैं।
 
बल उसी के न क्या पुजे बावन।
 हैं अपावन अछूत सब वै+से।कैसे।
है भला कौन पाँव सा पावन।
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