भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
हिज्जे
}}
क्षमा करो बापू ! तुम हमको,<br>
बचन भंग के हम अपराधी,<br>
राजघाट को किया अपावन,<br>
मंजिल मंज़िल भूले, यात्रा आधी |आधी।<br><br>
जयप्रकाश जी ! रखो भरोसा,<br>टुटे टूटे सपनों को जोड़ेंगे |जोड़ेंगे।<br>
चिताभस्म की चिंगारी से,<br>
अन्धकार के गढ़ तोड़ेंगे |तोड़ेंगे।
Anonymous user