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तुम हे साजन! / पढ़ीस

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मँइ गुनहगार के आधार हौ तुम हे साजन!
याक झलकिउ जो कहूँ तुम दिखायि भरि देतिउ,
अपनी ओढ़नी मा तुमका फाँसि कै राखिति साजन!
 
__बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’
 
सबद-अरथ: सगबगाइ – सकपकाब यानी संकोच करब
हन्नी – सप्तर्षि तारा मंडल कै समूह, हिरन
जुँधय्यउ – चंद्रमा
अथयी – डूबब, समाप्त हुअब या तिरोहित हुअब।
</poem>
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