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{{KKRachna
|रचनाकार=मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
फिर बर्फ़ की चोटी से उगी आग मिरे भाई
ज़ंजीर हिलाती है हवा जाग मिरे भाई
फ़िरदौस की तख़लीक में उलझे हैं मिरे हाथ
लिपटा है मिरे जिस्म से इक नाग मिरे भाई
पर्छाइयाँ दम साधे हुए रेंग रही थीं
गिरते हुए पत्तों ने कहा भाग मिरे भाई
फ़ुर्सत ही किसे है सुने प्यार के नग़्मात
तूने भी कहाँ छेड़ दिया राग मिरे भाई
आ और क़रीब और क़रीब और क़रीब आ
\बाक़ी न रहे और कोई लाग मिरे भाई
कहते हैं दरे -तौबा अभी बन्द नहीं है
इस बात पे बोतल से ड़े काग मिरे भाई
कल तक तो ’मुज़फ़्फ़र’ ने ग़ज़ल ओढ़ रखी थी
अब कौन संभालेगा ये खटराग मिरे भाई
</poem>
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|संग्रह=
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फिर बर्फ़ की चोटी से उगी आग मिरे भाई
ज़ंजीर हिलाती है हवा जाग मिरे भाई
फ़िरदौस की तख़लीक में उलझे हैं मिरे हाथ
लिपटा है मिरे जिस्म से इक नाग मिरे भाई
पर्छाइयाँ दम साधे हुए रेंग रही थीं
गिरते हुए पत्तों ने कहा भाग मिरे भाई
फ़ुर्सत ही किसे है सुने प्यार के नग़्मात
तूने भी कहाँ छेड़ दिया राग मिरे भाई
आ और क़रीब और क़रीब और क़रीब आ
\बाक़ी न रहे और कोई लाग मिरे भाई
कहते हैं दरे -तौबा अभी बन्द नहीं है
इस बात पे बोतल से ड़े काग मिरे भाई
कल तक तो ’मुज़फ़्फ़र’ ने ग़ज़ल ओढ़ रखी थी
अब कौन संभालेगा ये खटराग मिरे भाई
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