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<poem>
आगरा से गुजरते हुए मन
ताज के अंधियाले तल में
पल भर रुकता है
गहरी साँस लेता
प्रेम को मनकों सा फेरता
बंध कर रह जाता है उसी डोर से

तुम मेरे जीवन में
वही डोर हो प्रिय
जिसमें गुंथे मनको को
मेरी उंगलियाँ
अहर्निश फेरा करती हैं
अनथक...
</poem>
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