भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
बीज ऐसा बो कि जिसकी बेल बन बढ़ जाये.
फल लगें ऐसे कि सुख रस, सार और समर्थ
प्राण- संचारी कि शोभा-भर न जिनका अर्थ.
टेढ़ मत पैदा करे गति तीर की अपना,