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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
|अनुवादक=
|संग्रह=चोखे चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
फूल है घूम घूम चूम रही।
है कली को खिला खिला देती।
है महक से दिसा महकती सी।
है मलय-पौन मोह दिल लेती।
है सराबोर सी अमीरस में।
चाँदनी है छिड़क रही तन पर।
धूम मह मह महक रही है वह।
बह रही है बसंत की बैहर।
मंद चल फूल की महक से भर।
सूझती चाल जो न भूल भरी।
आँख में धूल झोंक धूल उड़ा।
तो न बहती बयार धूल भरी।
फूल को चूम, छू हरे पत्ते।
बास से बस जगह जगह अड़ती।
जो न पड़ती लपट पवन ठंढी।
तो लपट धूप की न पट पड़ती।
</poem>
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|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
|अनुवादक=
|संग्रह=चोखे चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
}}
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<poem>
फूल है घूम घूम चूम रही।
है कली को खिला खिला देती।
है महक से दिसा महकती सी।
है मलय-पौन मोह दिल लेती।
है सराबोर सी अमीरस में।
चाँदनी है छिड़क रही तन पर।
धूम मह मह महक रही है वह।
बह रही है बसंत की बैहर।
मंद चल फूल की महक से भर।
सूझती चाल जो न भूल भरी।
आँख में धूल झोंक धूल उड़ा।
तो न बहती बयार धूल भरी।
फूल को चूम, छू हरे पत्ते।
बास से बस जगह जगह अड़ती।
जो न पड़ती लपट पवन ठंढी।
तो लपट धूप की न पट पड़ती।
</poem>