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ममता-मान सबै नसै, उर अति आनँद छाय॥-११॥
प्रेम-पंथ अति ही बिकट, देखत भाजैं लोग।
सुद्ध-स्वर्ण आसन अमल आइ बिराजत आप॥-२८॥
प्रेम अमिय चाहै पियौ, करै बिषय सौं नेह।
ये खल नाहिन सहि सकैं प्रेम-अगिनि की आँच॥-३४॥
कहि न जाय मुख सौं कछू स्याम-प्रेम की बात।
दोनों एक सरूप हैं, तहाँ न कोऊ नेम॥-७१॥
ग्यान-प्रेम दोउ पूज्य अति, दोउ बिमल बरनीय।
चहैं सुदुरलभ प्रेम-पद, तजि निज पद की टेक॥-७८॥
प्रेमी जन मुक्ति न लहै, प्रेमरूप हरि त्याग।