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<poem>
ना शौक़ ए वस्ल का दावा ना ज़ौक ए आश्नाई का
ना इक नाचीज़ बन्दा और उसे दावा ख़ुदाई का

कफ़स में हूँ मगर सारा चमन आँखों के आगे है
रिहाई के बराबर अब तस्सव्वुर है रिहाई का

नया अफ़साना कह वाइज़ तो शायद गर्म हो महफ़िल
क़यामत तो पुराना हाल है रोज़ ए जुदाई का

बहार आई है अब अस्मत का पर्दाफ़ाश होता है
जुनूं का हाथ है आज और दामन पारसाई का
</poem>
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