भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अपर्णा भटनागर |अनुवादक= |संग्रह= }} ...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अपर्णा भटनागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जाओ, देखो तो
क्या रख आई हूँ तुम्हारी स्टडी -टेबल पर
हल्दी की छींटवाला, एक खत चोरी-भरा
पढ़ लेना समय से
खुली रहती है खिड़की कमरे की
धूप, हवा, चिड़िया से
कहीं उड़ न जाएँ
हल्दी की छींटताज़ी
आज तुम ही आना किचिन में
कॉफ़ी का मग लेने
हम्म
कई दिनों बाद उबाले हैं ढेर टेसू केसरिया
तुम्हें पुरानी फाग याद है न
मैं कुछ भूल -सी गई हूँ
कई दिनों से कुछ गुनगुनाया ही नहीं
साफ़ करती रही शीशे घर के
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अपर्णा भटनागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जाओ, देखो तो
क्या रख आई हूँ तुम्हारी स्टडी -टेबल पर
हल्दी की छींटवाला, एक खत चोरी-भरा
पढ़ लेना समय से
खुली रहती है खिड़की कमरे की
धूप, हवा, चिड़िया से
कहीं उड़ न जाएँ
हल्दी की छींटताज़ी
आज तुम ही आना किचिन में
कॉफ़ी का मग लेने
हम्म
कई दिनों बाद उबाले हैं ढेर टेसू केसरिया
तुम्हें पुरानी फाग याद है न
मैं कुछ भूल -सी गई हूँ
कई दिनों से कुछ गुनगुनाया ही नहीं
साफ़ करती रही शीशे घर के
</poem>