भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हलफ़नामा / विपिन चौधरी

1,654 bytes added, 04:37, 22 अप्रैल 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विपिन चौधरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
उसी शिद्दत से 'मैं' उसके विचार में दाखिल होती हूँ
जिस शिद्दत से
‘घर’
भागे हुए लड़के के सपनों में शामिल होता आया है

प्रकृति ने अपनी घुट्टी में
कुछ ऐसा स्नेह घोल कर पिलाया कि
शाखों से झडे पत्ते
कई दिन उस पेड़ की छाया से दूर जाने से कतराते रहे

झूठा है ये बिछुड़ना, शब्द
प्यार के दस्तूर में
अलगाव कभी शामिल नहीं हुआ

प्रेम उस ऊँचाई का नाम है
जहाँ से गिरने के बाद
मौत का कभी कोई जिक्र नहीं हुआ

हमारे तुम्हारे समय को
बिना रोक-टोक के आगे बढ़ने दो
किसी तीसरे समय में
विस्मृति का उल्लेख करेंगे

वैसे भी ये कुछ ऐसे
बारीक़ हलफनामें हैं जिन्हें
कहीं उकडू बैठ
छिपे रहने
में ही आनंद आता रहा है
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits