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|रचनाकार=विपिन चौधरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
रोटी का स्याह पक्ष ही
देखा है उन्होंने
जला हुआ,
महकविहीन
जंगल से आग तक
प्रेम से प्यास तक का
विचलित कर देने का सफर रहा है उनका
सब जानते हैं
उनके समानांतर एक भूख -पीढ़ी चल रही है
कड़ी धूप में नंगे पाँव
लम्बे सफर के बाद
बची-खुची हिम्मत के साथ
वे हादसों की तह में उतरते हैं
इस जीवन के कदापि विरुद्ध नहीं
फिर भी वे
जिसने उन्हें हर कदम पर छकाया है
ना जाने कब वे इतिहास में अपना कदम रखते हैं
कब वर्तमान में अपनी सिकुड़ी हुई जगह बनाते हैं
और कब अनिश्चित भविष्य में भी अपने होने का प्रबल दावा रखते हैं
इंसानियत की पहल पर ऊँचा मचान तैयार करते हुए
लगातार धरती पर नजर टिकाए हुए
दुनियावी शऊर से कोसों दूरउनका सफर आज भी जारी है
</poem>
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रोटी का स्याह पक्ष ही
देखा है उन्होंने
जला हुआ,
महकविहीन
जंगल से आग तक
प्रेम से प्यास तक का
विचलित कर देने का सफर रहा है उनका
सब जानते हैं
उनके समानांतर एक भूख -पीढ़ी चल रही है
कड़ी धूप में नंगे पाँव
लम्बे सफर के बाद
बची-खुची हिम्मत के साथ
वे हादसों की तह में उतरते हैं
इस जीवन के कदापि विरुद्ध नहीं
फिर भी वे
जिसने उन्हें हर कदम पर छकाया है
ना जाने कब वे इतिहास में अपना कदम रखते हैं
कब वर्तमान में अपनी सिकुड़ी हुई जगह बनाते हैं
और कब अनिश्चित भविष्य में भी अपने होने का प्रबल दावा रखते हैं
इंसानियत की पहल पर ऊँचा मचान तैयार करते हुए
लगातार धरती पर नजर टिकाए हुए
दुनियावी शऊर से कोसों दूरउनका सफर आज भी जारी है
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