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दिये का तेल सारा जल चुका है
बस इक रक्से-शरर <ref>लौ का निरित्य</ref> होने को है फिर
तख़य्युल <ref>कल्पना</ref> अब मुजस्सम <ref>रूपधरना</ref> हो चला है ‘अना’ तू बेहुनर होने को है फिर</poem>{{KKMeaning}}