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दर्द भी नहीं जाता, चोट भी नहीं जाती
गर तलब हो सादिक़ <ref>सच्ची </ref> तो ख़र्च-वर्च कर डालोमुफ़्त की शराबों से तिश्नगी <ref>प्यास </ref> नहीं जाती
अब भी उसके रस्ते में दिल धड़कने लगता है
और ये मुहब्बत ही तुमसे की नहीं जाती
तर्के-मय <ref>शराब छोडना </ref> को ऐ वाइज़ <ref>मौलाना </ref> तू न कुछ समझ लेना
इतनी पी चुका हूँ के और पी नहीं जाती
नाव को किनारा तो वो ख़ुदा ही बख़्शेगा
फिर भी नाख़ुदाओं <ref>मल्लाह </ref> की बंदगी नहीं जाती
शेरो शायरी क्या है सब उसी का चक्कर है
जिन हुदूद के आगे शायरी नहीं जाती
</poem>
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