भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
वह आता है
सड़कों पर ठेले में
बोरियां बोरियाँ लादे
भरी दोपहर और तेज धूप में
पसीने से तर -बतर
जलती है देह
ठेले पर नहीं है पानी से भरी
वह आता है
कमर झुकाए
कोयले की खदानों से
बीस मंजिला इमारत में
पेट में जलती आग लिए
डामर की टूटी सड़कों पर
उढ़ेलेगा उड़ेलेगा गर्म तारकोल
कतारबद्ध, तसला, गिट्टी, बेलचा
जलते पैरों से होगा हमारी खातिर
तब इक सड़क का निर्माण
वह दिन भर
दुर्गन्ध में कुनमुनाता
बोझ से दबा हुआ
धड़ है जैसे सर विहीन
वह सृजनकर्ता है
दुख सहके भी सुख बांटताबाँटता
भूख को पटकनी देता
वह हमारी खातिर तपता है
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,151
edits