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मैं मेल-ट्रेन की तरह दौड़ता कमरे के भीतर आया
पर्चा हाथों में पकड़ लिया, ऑंखें आँखें मूंदीं टुक झूम गया
पढ़ते ही छाया अंधकार, चक्कर आया सिर घूम गया
जिन हाथों ने ये प्रश्न लिखे, वे हाथ तुम्हारे कटे नहीं
फिर ऑंख आँख मूंदकर बैठ गया, बोला भगवान दया कर दे
मेरे दिमाग़ में इन प्रश्नों के उत्तर ठूँस-ठूँस भर दे
मेरा भविष्य है ख़तरे में, मैं भूल रहा हूँ ऑंयआँय-बाँय
तुम करते हो भगवान सदा, संकट में भक्तों की सहाय
आकाश चीरकर अंबर से, आई गहरी आवाज़ एक
रे मूढ़ व्यर्थ क्यों रोता है, तू ऑंख आँख खोलकर इधर देख
गीता कहती है कर्म करो, चिंता मत फल की किया करो
लिख दिया महात्मा बुध्द महात्मा गांधी जी के चेले थे
गांधी जी के संग बचपन में ऑंखआँख-मिचौली खेले थे
राणा प्रताप ने गौरी को, केवल दस बार हराया था
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