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रचनाकार: [[सुरेश सलिलताद्युश रोज़ेविच]]
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<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
गुज़रने वाले राहगीर कतराकर गुज़र जाते हैं कोई भी नहीं उठाता वह विद्वान ढेला उस ढेले के भीतर एक नन्हीं-सी,सफ़ेद,नंगी कविता जलती रहती है राख हो जाने तक । (रचनाकाल : 2002-2003)
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