{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
}} [[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है
आज जब हक़ीक़त है के दौर हर ज़र्रे में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ तू रहता है <br>ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है <br><br>
जब हक़ीक़त अपना अंजाम तो मालूम है के सब को फिर भी अपनी नज़रों में हर ज़र्रे में तू रहता है <br>फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर इन्सान सिकंदर क्यूँ है <br><br>
अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी <br>अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है <br><br> ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब "फ़ाकिर" <br>वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है <br><br/poem>