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|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
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शीशागर बैठे रहे ज़िक्र-ए-मसीहा लेकर <br>और हम टूट गये काँच के प्यालों की तरह <br><br>
जब भी अंजाम-ए-मुहब्बत ने पुकार ख़ुद को <br>वक़्त ने पेश किया हम को मिसालों की तरह <br><br>
ज़िक्र जब होगा मुहब्बत में तबाही का कहीं <br>याद हम आयेंगे दुनिया को हवालों की तरह <br><br/poem>