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{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
}}{{KKCatGhazal}}<poem>उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िन्दगी <br>हर शय जहाँ हसीन थी, हम तुम थे अजनबी <br><br>
लेकर चले थे हम जिन्हें जन्नत के ख़्वाब थे <br>फूलों के ख़्वाब थे वो मुहब्बत के ख़्वाब थे <br>लेकिन कहाँ है उन में वो पहली सी दिलकशी <br><br>
रहते थे हम हसीन ख़यालों की भीड़ में <br>उलझे हुए हैं आज सवालों की भीड़ में <br>आने लगी है याद वो फ़ुर्सत की हर घड़ी <br><br>
शायद ये वक़्त हमसे कोई चाल चल गया <br>रिश्ता वफ़ा का और ही रंगो में ढल गया <br>अश्कों की चाँदनी से थी बेहतर वो धूप ही <br><br/poem>