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{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
}} [[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem> ज़िन्दगी तुझ को जिया है कोई अफ़सोस नहीं ज़हर ख़ुद मैनें पिया है कोई अफ़सोस नहीं
ज़िन्दगी तुझ मैनें मुजरिम को जिया है कोई अफ़सोस नहीं <br>भी मुजरिम न कहा दुनिया में ज़हर ख़ुद मैनें पिया बस यही जुर्म किया है कोई अफ़सोस नहीं <br><br>
मैनें मुजरिम को भी मुजरिम न कहा दुनिया मेरी क़िस्मत में <br>लिखे थे ये उन्हीं के आँसू बस यही जुर्म किया दिल के ज़ख़्मों को सिया है कोई अफ़सोस नहीं <br><br>
मेरी क़िस्मत में लिखे थे ये उन्हीं के आँसू <br>दिल के ज़ख़्मों को सिया है कोई अफ़सोस नहीं <br><br> अब गिरे संग कि शीशों की हो बारिश 'फ़ाकिर' <br>अब कफ़न ओड़ लिया है कोई अफ़सोस नहीं <br><br/poem>