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ओ मेरे दिल!-3 / अज्ञेय

No change in size, 07:47, 12 मई 2014
<poem>
धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल!
तुझ में सामथ्र्य सामर्थ्य रहे जब तक तू ऐसे सदा तड़पता चल!
बीते युग में जब किसी दिवस प्रेयसि के आग्रह से बेबस,
उस आदिम आदम ने पागल, चख लिया ज्ञान का वर्जित फल,
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