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15:25, 13 मई 2014
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द्वार के आगेवह क्या लक्ष्य::और द्वारजिसे पा कर फिर प्यास रह गयी शेष: यह नहीं कि कुछ अवश्य:बताने की, क्या पाया?::है उन के पारवह कैसा पथ-किन्तु हर बारदर्शक ::मिलेगा आलोक, झरेगी रसजो सारा पथ देख::स्वयं फिर आया::और साथ में-धार।आत्म-तोष से भरा-::मान-चित्र लाया! ::और वह कैसा राही::कहे कि हाँ, ठहरो, चलता हूँ::इस दोपहरी में भी, पर इतना बतला दो::कितना पैंडा मार::मिलेगी पहली छाया?
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