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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=सब के साथ मिल जाएगा / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>धोरों को निहारता हूँ
ये धोरे मेरे अपने हैं
इनमें पानी नहीं है
पर हवा तो हैं
बदली-बदली
मस्त-पस्त
ठण्डी-गरम
परसता हूँ
धोरों को
</poem>
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|संग्रह=सब के साथ मिल जाएगा / राजेन्द्र जोशी
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ये धोरे मेरे अपने हैं
इनमें पानी नहीं है
पर हवा तो हैं
बदली-बदली
मस्त-पस्त
ठण्डी-गरम
परसता हूँ
धोरों को
</poem>