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{{KKRachna
|रचनाकार=रहीम
|अनुवादक=
|संग्रह=रहीम दोहावली
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धन दारा अरु सुतन सों, लग्यों रहै नित चित्त । <BR/>चित्त। नहि रहीम कोऊ लख्यो, गाढ़े दिन को मित्त ॥ 102 ॥ <BR/><BR/>मित्त॥102॥
दोनों रहिमन एक से, जौलों बोलत नाहिं । <BR/>नाहिं। जान परत है काक पिक, ॠतु बसन्त के भांहि ॥ 103 ॥ <BR/><BR/>भांहि॥103॥
नात नेह दूरी भली, जो रहीम जिय जानि । <BR/>जानि। निकट निरादर होत है, ज्यों गड़ही को पानि ॥ 104 ॥ <BR/><BR/>पानि॥104॥
धूर धरत नित सीस पर, कहु रहीम केहि काज । <BR/>काज। जेहि रज मुनि पतनी तरी, सो ढ़ूंढ़त गजराज ॥ 105 ॥ <BR/><BR/>गजराज॥105॥
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत । <BR/>समेत। ते रहिमन पसु ते अधिक, रीझेहुं कछु न देत ॥ 106 ॥ <BR/><BR/>देत॥106॥
नहिं रहीम कछु रूप गुन, नहिं मृगया अनुराग । <BR/>अनुराग। देसी स्वान जो राखिए, भ्रमत भूख ही लाग ॥ 107 ॥ <BR/><BR/>लाग॥107॥
निज कर क्रिया रहीम कहि, सिधि भावी के हाथ । <BR/>हाथ। पांसे अपने हाथ में, दांव न अपने हाथ ॥ 108 ॥ <BR/><BR/>हाथ॥108॥
परि रहिबो मरिबो भलो, सहिबो कठिन कलेम । <BR/>कलेम। बामन हवैं बलि को छल्लो, दियो भलो उपदेश ॥ 109 ॥ <BR/><BR/>उपदेश॥109॥
नैन सलोने अधर मधु, कहु रहीम घटि कौन । <BR/>कौन। मीठो भावे लोन पर, अरु मीठे पर लौन ॥ 110 ॥ <BR/><BR/>लौन॥110॥पन्नगबेलि पतिव्रता, रति सम सुनो सुजान । <BR/>सुजान। हिम रहीम बेली दही, सत जोजन दहियान ॥ 111 ॥ <BR/><BR/>दहियान॥111॥
पसिर पत्र झंपहि पिटहिं, सकुचि देत ससि सीत । <BR/>सीत। कहु रहीम कुल कमल के, को बेरी को मीत ॥ 112 ॥ <BR/><BR/>मीत॥112॥
पात-पात को सीचिबों, बरी बरी को लौन । <BR/>लौन। रहिमन ऐसी बुद्धि को, कहो बैरगो कौन ॥ 113 ॥ <BR/><BR/>कौन॥113॥
बड़ माया को दोष यह, जो कबहूं घटि जाय । <BR/>जाय। तो रहीम गरिबो भलो, दुख सहि जिए बलाय ॥ 114 ॥ <BR/><BR/>बलाय॥114॥
पुरुष पूजै देवरा, तिय पूजै रघूनाथ । <BR/>रघूनाथ। कहि रहीम दोउन बने, पड़ो बैल के साथ ॥ 115 ॥ <BR/><BR/>साथ॥115॥
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन । <BR/>मौन। अब दादुर वक्ता भए, हम को पूछत कौन ॥ 116 ॥ <BR/><BR/>कौन॥116॥
प्रीतम छवि नैनन बसि, पर छवि कहां समाय । <BR/>समाय। भरी सराय रहीम लखि, आपु पथिक फिरि जाय ॥ 117 ॥ <BR/><BR/>जाय॥117॥
बड़े दीन को दुख सुने, लेत दया उर आनि । <BR/>आनि। हरि हाथी सों कब हुती, कहु रहीम पहिचानि ॥ 118 ॥ <BR/><BR/>पहिचानि॥118॥
बड़े बड़ाई नहिं तजैं, लघु रहीम इतराइ । <BR/>इतराइ। राइ करौंदा होत है, कटहर होत न राइ ॥ 119 ॥ <BR/><BR/>राइ॥119॥
बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बाढ़ि । <BR/>बाढ़ि। यातें हाथी हहरि कै, दयो दांत द्वै काढ़ि ॥ 120 ॥ <BR/><BR/>काढ़ि॥120॥
बढ़त रहीम धनाढय धन, धनौं धनी को जाई । <BR/>जाई। धटै बढ़ै वाको कहा, भीख मांगि जो खाई ॥ 121 ॥ <BR/><BR/>खाई॥121॥बड़े बड़ाई ना करें, बड़ो न बोलें बोल । <BR/>बोल। रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका है मोल ॥ 122 ॥ <BR/><BR/>मोल॥122॥
बरू रहीम कानन बसिय, असन करिय फल तोय । <BR/>तोय। बन्धु मध्य गति दीन हवै, बसिबो उचित न होय ॥ 123 ॥ <BR/><BR/>होय॥123॥
बिपति भए धन ना रहै, रहै जो लाख करोर । <BR/>करोर। नभ तारे छिपि जात हैं, ज्यों रहीम ये भोर ॥ 124 ॥ <BR/><BR/>भोर॥124॥
बांकी चितवनि चित चढ़ी, सूधी तौ कछु धीम । <BR/>धीम। गांसी ते बढ़ि होत दुख, काढ़ि न कढ़त रहीम ॥ 125 ॥ <BR/><BR/>रहीम॥125॥
विरह रूप धन तम भए, अवधि आस उधोत । <BR/>उधोत। ज्यों रहीम भादों निसा, चमकि जात खद्दोत ॥ 126 ॥ <BR/><BR/>खद्दोत॥126॥
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस । <BR/>सोस। महिमा घटी समुन्द्र की, रावन बस्यो परोस ॥ 127 ॥ <BR/><BR/>परोस॥127॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय । <BR/>कोय। रहिमन बिगरै दूध को, मथे न माखन होय ॥ 128 ॥ <BR/><BR/>होय॥128॥
भावी काहू न दही, दही एक भगवान । <BR/>भगवान। भावी ऐसा प्रबल है, कहि रहीम यह जानि ॥ 129 ॥ <BR/><BR/>जानि॥129॥
भीत गिरी पाखान की, अररानी वहि ठाम । <BR/>ठाम। अब रहीम धोखो यहै, को लागै केहि काम ॥ 130 ॥ <BR/><BR/>काम॥130॥
भजौं तो काको मैं भजौं, तजौं तो काको आन । <BR/>आन। भजन तजन ते बिलग हैं, तेहिं रहीम जू जान ॥ 131 ॥ <BR/><BR/>जान॥131॥
भावी या उनमान की, पांडव बनहिं रहीम । <BR/>रहीम। तदपि गौरि सुनि बांझ, बरू है संभु अजीम ॥ 132 ॥ <BR/><BR/>अजीम॥132॥भलो भयो घर ते छुटयो, हस्यो सीस परिखेत । <BR/>परिखेत। काके काके नवत हम, अपत पेट के हेत ॥ 133 ॥ <BR/><BR/>हेत॥133॥
भूप गनत लघु गुनिन को, गुनी गुनत लघु भुप । <BR/>भुप। रहिमन गिरि ते भूमि लौं, लखौ तौ एकै रुप ॥ 134 ॥ <BR/><BR/>रुप॥134॥
महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष । <BR/>अवसेष। सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष ॥ 135 ॥ <BR/><BR/>भेष॥135॥
मनसिज माली कै उपज, कहि रहीम नहिं जाय । <BR/>जाय। फल श्यामा के उर लगे, फूल श्याम उर जाय ॥ 136 ॥ <BR/><BR/>जाय॥136॥
मथत मथत माखन रहै, दही मही विलगाय । <BR/>विलगाय। रहिमन सोई मीत है, भीत परे ठहराय ॥ 137 ॥ <BR/><BR/>ठहराय॥137॥
मन से कहां रहीम प्रभु, दृग सों कहा दिवान । <BR/>दिवान। देखि दृगन जो आदरैं, मन तोहि हाथ बिकान ॥ 138 ॥ <BR/><BR/>बिकान॥138॥
माह मास लहि टेसुआ, मीन परे थल और । <BR/>और। त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपने ठौर ॥ 139 ॥ <BR/><BR/>ठौर॥139॥
मांगे मुकरिन को गयो, केहि न त्यागियो साथ । <BR/>साथ। मांगत आगे सुख लहयो, ते रहीम रघुनाथ ॥ 140 ॥ <BR/><BR/>रघुनाथ॥140॥
मान सरोवर ही मिलैं, हंसनि मुक्ता भोग । <BR/>भोग। सफरिन भरे रहीम सर, बक बालक नहिं जोग ॥ 141 ॥ <BR/><BR/>जोग॥141॥
मान सहित विष खाय के, संभु भए जगदीस । <BR/>जगदीस। बिना मान अमृत पिए, राहु कटायो सीस ॥ 142 ॥ <BR/><BR/>सीस॥142॥
मांगे घटत रहीम पद, कितौ करो बड़ काम । <BR/>काम। तीन पैग वसुधा करी, तऊ बावने नाम ॥ 143 ॥ <BR/><BR/>नाम॥143॥मूढ़ मंडली में सुजन, ठहरत नहीं विसेख । <BR/>विसेख। स्याम कंचन में सेत ज्यों, दूरि कीजिअत देख ॥ 144 ॥ <BR/><BR/>देख॥144॥
यद्धपि अवनि अनेक हैं, कूपवन्त सर ताल । <BR/>ताल। रहिमन मान सरोवरहिं, मनसा करत मराल ॥ 145 ॥ <BR/><BR/>मराल॥145॥
मुनि नारी पाषान ही, कपि पसु गुह मातंग । <BR/>मातंग। तीनों तारे रामजु तीनो मेरे अंग ॥ 146 ॥ <BR/><BR/>अंग॥146॥
मंदन के मरिहू, अवगुन गुन न सराहि । <BR/>सराहि। ज्यों रहीम बांधहू बंधै, मरवा हवै अधिकाहि ॥ 147 ॥ <BR/><BR/>अधिकाहि॥147॥
मुक्ता कर करपूर कर, चातक-जीवन जोय । <BR/>जोय। एतो बड़ो रहीम जल, ब्याल बदन बिस होय ॥ 148 ॥ <BR/><BR/>होय॥148॥
यह रहीम मानै नहीं, दिन से नवा जो होय । <BR/>होय। चीता चोर कमान के, नए ते अवगुन होय ॥ 149 ॥ <BR/><BR/>होय॥149॥
यों रहीम सुख दु:ख सहत, बड़े लोग सह सांति । <BR/>सांति। उदत चंद चोहि भांति सों, अथवत ताहि भांति ॥ 150 ॥ <BR/><BR/>भांति॥150॥
यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय । <BR/>कोय। बैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय ॥ 151 ॥ <BR/><BR/>होय॥151॥
ये रहीम फीके दुवौ, जानि महा संतापु । <BR/>संतापु। ज्यों तिय कुच आपन गहे, आपु बड़ाई आपु ॥ 152 ॥ <BR/><BR/>आपु॥152॥
याते जान्यो मन भयो, जरि बरि भसम बनाय । <BR/>बनाय। रहिमन जाहि लगाइए, सोइ रूखो है जाय ॥ 153 ॥ <BR/><BR/>जाय॥153॥
रन बन व्याधि विपत्ति में, रहिमन मरै न रोय । <BR/>रोय। जो रच्छक जननी जठर, सो हरि गए कि सोय ॥ 154 ॥ <BR/><BR/>सोय॥154॥रहिमन अपने पेट सों, बहुत कह्यो समुझाय । <BR/>समुझाय। जो तू अनखाए रहे, तो सों को अनखाय ॥ 155 ॥ <BR/><BR/>अनखाय॥155॥
रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि । <BR/>कानि। सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि ॥ 156 ॥ <BR/><BR/>हानि॥156॥
वहै प्रति नहिं रीति वह, नहीं पाछिलो हेत । <BR/>हेत। घटत घटत रहिमन घटै, ज्यों कर लीन्हे रेत ॥ 157 ॥ <BR/><BR/>रेत॥157॥
रहिमन अपने गोत को, सबै चहत उत्साय । <BR/>उत्साय। मृग उछरत आकास को, भूमी खनत बराह ॥ 158 ॥ <BR/><BR/>बराह॥158॥
रहिमन अब वे विरिछ कहं, जिनकी छांह गंभीर । <BR/>गंभीर। बागन बिच बिच देखियत, सेहुड़ कंज करीर ॥ 159 ॥ <BR/><BR/>करीर॥159॥
रहिमन सूधी चाल तें, प्यादा होत उजीर । <BR/>उजीर। फरजी मीर न है सके, टेढ़े की तासीर ॥ 160 ॥ <BR/><BR/>तासीर॥160॥
रहिमन खोटि आदि की, सो परिनाम लखाय । <BR/>लखाय। जैसे दीपक तम भरवै, कज्जल वमन कराय ॥ 161 ॥ <BR/><BR/>कराय॥161॥
रहिमन राज सराहिए, ससि सुखद जो होय । <BR/>होय। कहा बापुरो भानु है, तपै तरैयन खोय ॥ 162 ॥ <BR/><BR/>खोय॥162॥
रहिमन आंटा के लगे, बाजत है दिन रात । <BR/>रात। घिउ शक्कर जे खात हैं, तिनकी कहां बिसात ॥ 163 ॥ <BR/><BR/>बिसात॥163॥
रहिमन एक दिन वे रहे, बीच न सोहत हार । <BR/>हार। वायु जो ऐसी बस गई, बीचन परे पहार ॥ 164 ॥ <BR/><BR/>पहार॥164॥
रहिमन रिति सराहिए, जो घत गुन सम होय । <BR/>होय। भीति आप पै डारि कै, सबै मियावे तोय ॥ 165 ॥ <BR/><BR/>तोय॥165॥रीति प्रीति सबसों भली, बैर न हित मित गोत । <BR/>गोत। रहिमन याही जनम की, बहुरि न संगति होत ॥ 166 ॥ <BR/><BR/>होत॥166॥
रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि । <BR/>काहि। दूध कलारी कर गहे, मद समुझैं सब ताहि ॥ 167 ॥ <BR/><BR/>ताहि॥167॥
समय लाभ समय लाभ नहिं, समय चूक सम चूक । <BR/>चूक। चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक ॥ 168 ॥ <BR/><BR/>हूक॥168॥
रहिमन नीच प्रसंग ते, नित प्रति लाभ विकार । <BR/>विकार। नीर चोरावै संपुटी, भारू सहे धारिआर ॥ 169 ॥ <BR/><BR/>धारिआर॥169॥
रहिमन दानि दरिद्रतर, तऊ जांचिबे योग । <BR/>योग। ज्यों सरितन सूखा करे, कुआं खनावत लोग ॥ 170 ॥ <BR/><BR/>लोग॥170॥
रहिमन तीर की चोट ते, चोट परे बचि जाय । <BR/>जाय। नैन बान की चोट तैं, चोट परे मरि जाय ॥ 171 ॥ <BR/><BR/>जाय॥171॥
रुप बिलोकि रहीम तहं, जहं तहं मन लगि जाय । <BR/>जाय। याके ताकहिं आप बहु, लेत छुड़ाय, छुड़ाय ॥ 172 ॥ <BR/><BR/>छुड़ाय॥172॥
सदा नगारा कूच का, बाजत आठो जाम । <BR/>जाम। रहिमन या जग आइकै, का करि रहा मुकाम ॥ 173 ॥ <BR/><BR/>मुकाम॥173॥
समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जात । <BR/>जात। सदा रहै नहीं एक सी, का रहीम पछितात ॥ 174 ॥ <BR/><BR/>पछितात॥174॥
रहिमन आलस भजन में, विषय सुखहिं लपटाय । <BR/>लपटाय। घास चरै पसु स्वाद तै, गुरु गुलिलाएं खाय ॥ 175 ॥ <BR/><BR/>खाय॥175॥
रहिमन वित्त अधर्म को, जरत न लागै बार । <BR/>बार। चोरी करि होरी रची, भई तनिक में छार ॥ 176 ॥ <BR/><BR/>छार॥176॥रहिमन जो तुम कहत थे, संगति ही गुन होय । <BR/>होय। बीच उखारी रसभरा, रह काहै ना होय ॥ 177 ॥ <BR/><BR/>होय॥177॥
रहिमन रिस को छांड़ि कै, करो गरीबी भेस । <BR/>भेस। मीठो बोलो, नै चलो, सबै तुम्हारो देस ॥ 178 ॥ <BR/><BR/>देस॥178॥
रहिमन मारगा प्रेम को, मर्मत हीत मझाव । <BR/>मझाव। जो डिरिहै ते फिर कहूं, नहिं धरने को पांव ॥ 179 ॥ <BR/><BR/>पांव॥179॥
रहिमन सुधि सब ते भली, लगै जो बारंबार । <BR/>बारंबार। बिछुरे मानुष फिर मिलें, यहै जान अवतार ॥ 180 ॥ <BR/><BR/>अवतार॥180॥
रहिमन चाक कुम्हार को, मांगे दिया न देई । <BR/>देई। छेद में ड़डा डारि कै, चहै नांद लै लेई ॥ 181 ॥ <BR/><BR/>लेई॥181॥
रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय । <BR/>होय। हित अनहित मा जगत में, जानि परत सब कोय ॥ 182 ॥ <BR/><BR/>कोय॥182॥
रहिमन रजनी ही भली, पिय सों होय मिलाप । <BR/>मिलाप। खरो दिवस केहि काम जो, रहिबो आपुहि आप ॥ 183 ॥ <BR/><BR/>आप॥183॥
रहिमन बात अगम्य की, कहन सुनन की नाहिं । <BR/>नाहिं। जो जानत सो कहत नहिं, कहत ते जानत नाहिं ॥ 184 ॥ <BR/><BR/>नाहिं॥184॥
रहिमन अंसुवा नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ । <BR/>करेइ। जाहि निकारो गेह तें, कस न भेद कहि देइ ॥ 185 ॥ <BR/><BR/>देइ॥185॥
रहिमन मंदत बड़ेन की, लघुता होत अनूप । <BR/>अनूप। बलि मरद मोचन को गए, धरि बावन को रूप ॥ 186 ॥ <BR/><BR/>रूप॥186॥
रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट है जात । <BR/>जात। नारायण हू को भयो, बावन अंगूर गात ॥ 187 ॥ <BR/><BR/>गात॥187॥समय दसा कुल देखिकै, सबै करत सनमान । <BR/>सनमान। रहिमन दीन अनाथ को, तुम बिन को भगवान ॥ 188 ॥ <BR/><BR/>भगवान॥188॥
सरवर के खग एक से, बाढ़त प्रीति न धीम । <BR/>धीम। पै मराल को मानसर, एकै ठौर रहीम ॥ 189 ॥ <BR/><BR/>रहीम॥189॥
रहिमन ठठरी धूर की, रही पवन ते पूरि । <BR/>पूरि। गांठ युक्ति की खुलि गई, अन्त धूरि की धूरि ॥ 190 ॥ <BR/><BR/>धूरि॥190॥
राम राम जान्यो नहीं, भइ पूजा में हानि । <BR/>हानि। कहि रहीम क्यों मानिहैं, जम के किंकरकानि ॥ 191 ॥ <BR/><BR/>किंकरकानि॥191॥
रहिमन सो न कछू गनै, जासों लागो नैन । <BR/>नैन। सहि के सोच बेसाहियो, गयो हाथ को चैन ॥ 192 ॥ <BR/><BR/>चैन॥192॥
रूप कथा पद चारू पट, कंचन दोहा लाल । <BR/>लाल। ज्यों ज्यों निरखत सूक्ष्म गति, मोल रहीम बिसाल ॥ 193 ॥ <BR/><BR/>बिसाल॥193॥
लिखी रहीम लिलार में, भई आन की आन । <BR/>आन। पद कर काटि बनारसी, पहुंचे मगहर थान ॥ 194 ॥ <BR/><BR/>थान॥194॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय । <BR/>चटकाय। टूटे से फिर न मिले, मिले तो गांठ पड़ जाय ॥ 195 ॥ <BR/><BR/>जाय॥195॥
रहिमन धरिया रहंट की, त्यों ओछे की डीठ । <BR/>डीठ। रीतेहि सन्मुख होत है, भरी दुखावै पीठ ॥ 196 ॥ <BR/><BR/>पीठ॥196॥
रहिमन लाख भली करो, अगुने अपुन न जाय । <BR/>जाय। राग सुनत पय पुअत हूं, सांप सहज धरि खाय ॥ 197 ॥ <BR/><BR/>खाय॥197॥
रहिमन तुम हमसों करी, करी करी जो तीर । <BR/>तीर। बाढ़े दिन के मीत हो, गाढ़े दिन रघुबीर ॥ 198 ॥ <BR/><BR/>रहिमन बिगरी आदि की, बनै न खरचे दाम । <BR/>हरि बाढ़े आकास लौं, तऊ बावने नाम ॥ 199 ॥ <BR/><BR/>रघुबीर॥198॥
रहिमन बिगरी आदि की, बनै न खरचे दाम। हरि बाढ़े आकास लौं, तऊ बावने नाम॥199॥ रहिमन पर उपकार के, करत न यारी बीच । <BR/>बीच। मांस दियो शिवि भूप ने, दीन्हो हाड़ दधीच ॥ 200 ॥ <BR/>दधीच॥200॥<BR/poem>