भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatMaithiliR...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विद्यापति
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
सुनु रसिया
आब न बजाउ बिपिन बँसिया।
बेरि बेरि चरणार्विंद गहि
सदा रहब बनि दसिया।
कि छलहुँ कि होएब से नहीं जानह
वृथा होएल कुल हँसिया।
अनुभव ऐसन मदन भुजंगम
हृदय मोर गेल डँसिया।
नंद-नंदन तुअ सरन न त्यागब
बरू जग होए दुरजसिआ।
विद्यापति कह सुनु बनितामनि
तोर मुख जीतल ससिआ।
धन्य धन्य तोर भाग गोआरिनि
हरि भजु हृदय हुलसिआ।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=विद्यापति
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
सुनु रसिया
आब न बजाउ बिपिन बँसिया।
बेरि बेरि चरणार्विंद गहि
सदा रहब बनि दसिया।
कि छलहुँ कि होएब से नहीं जानह
वृथा होएल कुल हँसिया।
अनुभव ऐसन मदन भुजंगम
हृदय मोर गेल डँसिया।
नंद-नंदन तुअ सरन न त्यागब
बरू जग होए दुरजसिआ।
विद्यापति कह सुनु बनितामनि
तोर मुख जीतल ससिआ।
धन्य धन्य तोर भाग गोआरिनि
हरि भजु हृदय हुलसिआ।
</poem>