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{{KKRachna
|रचनाकार=धर्मवीर भारती
|संग्रह=ठंढा ठण्डा लोहा / धर्मवीर भारती
}}
मेरी स्वप्न भरी पलकों पर<br>
गीत नहीं अब<br>
दर्द नहीं अब<br>
एक पर्त ठंढे ठंडे लोहे की<br>
मैं जम कर लोहा बन जाऊँ - <br>
हार मान लूँ - <br>
यही शर्त ठंढे ठंडे लोहे की <br>
मेरी सासों में यम के तीखे नेजे सा <br>
कौन अड़ा है ? <br>
ठंढा ठंडा लोहा ! <br>
मेरे और तुम्हारे भोले निश्चल विश्वासों को <br>
कुचलने कौन खड़ा है ?<br>
ठंढा ठंडा लोहा ! <br>
शीश झुकाए खड़ी मौन हैं <br>
बचा कौन है ? <br>
ठंढा ठंडा लोहा ! ठंढा ठंडा लोहा ! ठंढा ठंडा लोहा !<br>
''ठंढा ठंडा लोहा (काव्य संग्रह) में संग्रहित''
[[Category: धर्मवीर भारती]]
[[Category: कविताएँ]
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