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{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पिता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
तुमसे
छुपाकर जीती हूँ
तुम्हारा वियोग।
आवाज में ही
दवा ले जाती हूँ रूलाई।
लिखने से पहले
शब्दों से खींच लेती हूँ
बिछोह की पीड़ा।
तुम तक
पहुँचने वाले
सूर्य और चन्द्र में
चमकने देती हूँ
तुम्हारा चूमा हुआ प्रेम।
वियोग-संताप को
घोलती हूँ रक्त भीतर
कि आँख में जन्म न ले सकें आँसू।
</poem>
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तुमसे
छुपाकर जीती हूँ
तुम्हारा वियोग।
आवाज में ही
दवा ले जाती हूँ रूलाई।
लिखने से पहले
शब्दों से खींच लेती हूँ
बिछोह की पीड़ा।
तुम तक
पहुँचने वाले
सूर्य और चन्द्र में
चमकने देती हूँ
तुम्हारा चूमा हुआ प्रेम।
वियोग-संताप को
घोलती हूँ रक्त भीतर
कि आँख में जन्म न ले सकें आँसू।
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