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<poem>
खिलती है पँखुरी दर पँखुरी
सृष्टि पराग की
पुनर्सृष्टि के लिए
देह के मानसरोवर में।

देह की परतों के भीतर
स्पर्श रचता है
प्यार का भीगा-भीना सुख
विलक्षण अनुभूति इतिहास।

देह
प्रणय का ब्रहमाण्ड है।
साँसों की आँखें
स्पर्श करती हैं
स्नेह का अंतरंग कोना तक
जहाँ साँस लेता है ब्रहमाण्ड।

प्रणय की पुनर्सृष्टि की
शक्ति है अदृश्य
लेकिन
स्पर्श के भीतर दृश्य
इसी विश्वास में
प्रेम
धड़कता रहता है भजन बनकर।
</poem>
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