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एक दूसरे में / पुष्पिता

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चिड़िया की देह का
हिस्सा होकर भी
कुछ पंख
चिड़िया की उड़ान में
शामिल नहीं हैं।

पर्वत होने पर भी
शिखर बनने से
रह जाते हैं
पहाड़ के कुछ हिस्से।

हवाएँ
लिखती हैं उन पर
चढ़ाई की वेदना।

नदियाँ
अपनी तरल धार के प्रवाह में
हथिया कर बहा लाती हैं उन्हें।

नदी में
घुल जाते हैं शिखर
शिखर के रंग को रँग कर
नदी कभी हो जाती है शिखर
शिखर हो जाता है नदी
रेतीला, रुपहला और कभी
गेरुई और मटियाला।

दोनों की देह विसर्जित
एक दूसरे में
एक दूसरे के लिए।
</poem>
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