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<poem>
देह
नेह-ग्रंथ है
अधर
पृष्ठ-दर-पृष्ठ पर
लिखते हैं
बोले हुए अनबोले शब्द
चुपचाप
कि
बिछोह के व्याकुल क्षणों में
फड़फड़ाती है देह
शब्द-पक्षी की तरह

शब्द
उड़ जाना चाहते हैं
प्रिया के देह-पृष्ठ से
प्रिय के देह-पृष्ठों से
गुँथने के लिए।
</poem>
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