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स्पन्दन / पुष्पिता

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तुम!
मुझसे ज्यादा अकेले हो
जबकि
तुमसे अधिक मैं
इंतजार करती हूँ तुम्हारा।

हम खोज रहे हैं
अपना-अपना समय
एक-दूसरे की धड़कनों की घड़ी में।
अपने समय को
तुम्हारी गोद में
शिशु की तरह
किलकते हुए देखना चाहती हूँ।
तुम्हारे ही अंश को
तुम्हारी ही आँखों के सामने
बढ़ते हुए
देखना चाहती हूँ।

प्यार से अधिक
कोमल और रेशमी
कुछ नहीं बचा है
पृथ्वी पर
जीने के लिए।

तुम्हारी हथेली की अनुपस्थिति में
छोटी लगती है धरती
जिन हथेलियों में
सकेल लिया करती थी
भरा-पूरा दिन
आत्मीय रातें
बची हैं उनमें
करुण बेचैनी
सपनों की सिहरनें
समुद्री मन की सरहदों का शोर।

तुम्हारी आँखों में सोकर
आँखें देखती थीं
भविष्य के उन्मादक स्वप्न।

तुम्हारे प्रणय-वक्ष में जीकर
अपने लिए सुनी हैं
समय की धड़कनें
जो हैं
सपनों की मृत्यु के विरुद्ध …।
</poem>
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