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<poem>
बच्चे
देखे गए सपनों से
निकालते हैं नए सपने
जैसे
उसी कपड़े से निकालते हैं धागा
फटे के रफू के लिए।

बच्चे
मोर पंख में
देखते हैं मोर
और पिता में परमपिता।

पिता ही परमेश्वर
और माँ सर्वस्व।

कागज़ की
हवाई जहाज की फूँक उड़ान में
उड़ते देखते हैं अपने स्वप्नों का जहाज।

रेत के घरौंदे में
देखते हैं अपना पूरा घर।

वे
खेल-खेल में
खेलते हैं जीवन
और
हम सब
जीवन में खेलते हैं खेल।
</poem>
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