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{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पिता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
नील आँखी यूरोप का आकाश
वसंत-ऋतु में
जीता है नीलिमा
सुनील आकाश
गगन का वसंत है।
निलाई जानने वाला आकाश
पिघलकर उतरता है नीलमणि की तरह
माँ के गर्भ में
नवजात शिशु की 'नीली आँख' बनकर।
धरती के वसंत में
रमने और रमणीयता के लिए
टर्की के ट्युलिप-पुष्प
अपनी कलम से लिखते हैं
वसंत का रंगीनी अभिलेख।
शीत में ठिठुरता है यूरोप
गीला पतझर ओढ़कर
सो रहती है धरती
धरती की देह पर
झरता है पतझर।
</poem>
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नील आँखी यूरोप का आकाश
वसंत-ऋतु में
जीता है नीलिमा
सुनील आकाश
गगन का वसंत है।
निलाई जानने वाला आकाश
पिघलकर उतरता है नीलमणि की तरह
माँ के गर्भ में
नवजात शिशु की 'नीली आँख' बनकर।
धरती के वसंत में
रमने और रमणीयता के लिए
टर्की के ट्युलिप-पुष्प
अपनी कलम से लिखते हैं
वसंत का रंगीनी अभिलेख।
शीत में ठिठुरता है यूरोप
गीला पतझर ओढ़कर
सो रहती है धरती
धरती की देह पर
झरता है पतझर।
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